तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत (रैशनल चॉइस थ्योरी): प्रारंभ, स्पष्टीकरण, और उदाहरण

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत सामाजिक और आर्थिक व्यवहार को समझने और अक्सर औपचारिक रूप से मॉडलिंग करने के लिए एक रूपरेखा है। इस लेख में, हम बताएँगे कि यह क्या है, इसके मुख्य फ़ायदों और नुकसानों पर प्रकाश डालेंगे और इसके उपयोग के उदाहरण देंगे ।

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तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत (रैशनल चॉइस थ्योरी) क्या है?

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत एक अवधारणा है जो कहती है कि लोग अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों के अनुरूप परिणाम प्राप्त करने के लिए तर्कसंगत गणनाओं का उपयोग करते हैं। ये परिणाम लोगों के स्व-हितों को अधिकतम करने से जुड़े हैं। लोग तर्कसंगत दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं क्योंकि वे उन लाभों की अपेक्षा रखते हैं जो उन्हें फ़ायदा देंगे और अपने लिए उपलब्ध सीमित विकल्पों का उपयोग करने की संतुष्टि चाहते हैं।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत की तुलना अक्सर अदृश्य हाथ (इन्विंज़िबल हैंड), तर्कसंगत कर्ता (रैशनल एक्टर्स) और स्व-हित (सेल्फ-इंट्रेस्ट) की अवधारणाओं से की जाती है। अर्थशास्त्री अक्सर तर्क देते हैं कि सिद्धांत-संबंधी कारक समग्र रूप से विश्व अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे हैं।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत(रैशनल चॉइस थ्योरी) को समझना

इस सिद्धांत को समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। हम अनजाने में अपने निर्णयों में इसका रोज़ाना उपयोग करते हैं। 

क्रिसमस के समय किन रणनीतियों का उपयोग किया जा सकता है?

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत का आधार इस बात की सम्भावना है कि तर्कसंगत कार्य करने वाले (रैशनल एक्टर्स) कितने घनिष्ठ रूप से इससे जुड़े हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अपने पास मौजूद जानकारी तक पहुँचने और उसकी व्याख्या करने के बाद अर्थव्यवस्था में तर्कसंगत विकल्प चुनते हैं। तर्कसंगत कर्ता यानी कार्य करने वाले तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत की नींव बनाते हैं। एक धारणा है कि तर्कसंगत कर्ता (रैशनल एक्टर्स) हमेशा अपने लाभ को अधिकतम करने और किसी भी स्थिति में नुकसान को कम करने का प्रयास करते हैं।

लोगों के व्यवहार का अनुमान लगाने और मॉडल विकसित करने के लिए अर्थशास्त्री इस धारणा का उपयोग करते हैं। यह व्यापक अध्ययन का हिस्सा है और उन्हें समाज में तर्कसंगति की प्रकृति को समझने में मदद करता है।

स्व-हित (सेल्फ-इंट्रेस्ट) और अदृश्य हाथ (इन्विंज़िबल हैंड)

एडम स्मिथ(Adam Smith), तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत के मूलभूत सिद्धांतों को विकसित करने वाले पहले अर्थशास्त्रियों में से एक थे जिन्होंने इस विचार को सामने रखा कि लोग एक अदृश्य हाथ (invisible hand) से निर्देशित होते हैं।

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उन्होंने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “An Inquiry Into The Nature and Causes of the Wealth of Nations” में स्व-हित (सेल्फ-इंट्रेस्ट) और अदृश्य हाथ (इन्विंज़िबल हैंड) सिद्धांत के अपने अध्ययन पर प्रकाश डाला।

अदृश्य हाथ वह अदृश्य शक्ति है जो व्यक्तियों को अपने स्व-हित (सेल्फ-इंट्रेस्ट) में कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। उदाहरण के लिए, यह लोगों को कड़ी मेहनत करने, पैसे बचाने और उन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए प्रेरित करता है जो उनके जीवन को बेहतर बनाएँगे और एक मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगे।

स्मिथ (Smith) का मानना था कि यह स्वार्थी व्यवहार अंततः समग्र रूप से समाज को लाभान्वित करता है। जब लोगों को अपने स्वयं के साधनों पर छोड़ दिया जाता है और अपने स्वयं के हितों को आगे बढ़ाने की अनुमति दी जाती है, तो वे स्वाभाविक रूप से उन गतिविधियों की ओर अग्रसर होंगे जो उनके जीवन और उनके आसपास के लोगों के जीवन को बेहतर बनाएँगी।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत में आगे के विकास भी स्वार्थ से संबंधित नकारात्मक गलत धारणाओं को नकारते हैं। सिद्धांत के अनुसार, तर्कसंगत कर्ता (रैशनल एक्टर्स) जो अपने हितों और तर्कसंगती से कार्य करते हैं, ऐसे निर्णय लेते हैं जो बाद में पूरी अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित होते हैं।

अदृश्य हस्त सिद्धांत (इन्विंज़िबल हैंड थ्योरी) का समर्थन करने वाले अर्थशास्त्री कम सरकारी हस्तक्षेप और ज़्यादा मुक्त बाज़ार विनिमय अवसरों की तरफदारी करते हैं। उनका मानना है कि उत्पादन और उपभोग की स्वतंत्रता अर्थव्यवस्था को कुशलता से फ़लने- फ़ूलने देती है। और यह तभी संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति अपने स्व-हित के लिए कार्य कर रहा हो। बाज़ार की आपूर्ति और मांग के व्यक्तिगत दबाव के कारणों से कीमतों में प्रवाह अधिक स्वाभाविक रूप से होता है और जिससे व्यापार का प्रवाह आसान हो जाता है।

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तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत (रैशनल चॉइस थ्योरी) बनाम व्यवहारिक अर्थशास्त्र

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कई अर्थशास्त्री तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत (रैशनल चॉइस थ्योरी) और अदृश्य हाथ सिद्धांत (इन्विंज़िबल हैंड थ्योरी) की सटीकता पर असहमत हैं। जो असहमत हैं वे मानते हैं कि लोग हमेशा तर्कसंगत निर्णय लेने की ओर अग्रसर नहीं होते जो उपयोगिता को अधिकतम करता है। इस तरह जन्म हुआ व्यवहारिक अर्थशास्त्र (behavioral economics) का।

लोगों के आर्थिक निर्णय लेने पर क्या होता है इसका अध्ययन करने के लिए यह विज्ञान विकसित हुआ है। यह व्यक्तियों और संस्थानों की आर्थिक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को समझाने के लिए एक नया हस्तक्षेप है।

व्यवहारिक अर्थशास्त्र यह समझाने की कोशिश करता है कि व्यक्तिगत कर्ता कभी-कभी मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य का उपयोग करके तर्कहीन निर्णय क्यों लेते हैं। यह बताता है कि क्यों और कैसे उनका व्यवहार हमेशा आर्थिक मॉडल की भविष्यवाणियों का पालन नहीं करता।

तर्कसंगत निर्णय लेने की प्रक्रिया के आलोचकों और विरोधियों के अनुसार, एक आदर्श दुनिया में, लोग हमेशा इष्टतम निर्णय लेते हैं जो उन्हें अंतिम लाभ और संतुष्टि प्रदान करते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि हम एक आदर्श दुनिया में नहीं रह रहे हैं; वास्तविक दुनिया में, भावनाएँ और बाहरी कारक अक्सर लोगों को प्रभावित करते हैं।

इन अध्ययनों के परिणाम लगातार दिखाते हैं कि लोग हमेशा तर्कसंगत व्यवहार नहीं करते। फिर भी, उनके निर्णय लेने को अक्सर अन्य कारकों जैसे सामाजिक मानदंडों, भावनाओं और मानसिक शॉर्टकट द्वारा समझाया जा सकता है।

नोबेल पुरस्कार विजेता हर्बर्ट साइमन (Herbert Simon) ने मुख्यधारा के अर्थशास्त्र में पूर्ण तर्कसंगति की अवधारणा को खारिज कर दिया और इसके बजाय सीमित तर्कसंगति के सिद्धांत को पेश किया।

निर्णय लेने के सीमित तर्कसंगत मॉडल के अनुसार, लोगों को हमेशा निर्णय लेने के लिए आवश्यक पूरी जानकारी नहीं मिल सकती है। सर्वोत्तम समाधान चुनते समय वे पूर्ण लागत-लाभ विश्लेषण नहीं करते हैं, बल्कि वह व्यक्तिगत पर्याप्त मानदंडों को पूरा करने वाले समाधान को चुनते हैं । बंधी हुई तर्कसंगति का एक उदाहरण एक व्यापारी होगा जिसने बाज़ार की अधूरी जानकारी और जल्दबाज़ी के कारण अपने शेयरों को बेचने का जोखिम भरा निर्णय लिया।

अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर (Richard Thaler) ने इस विचार की और सीमाएँ दिखाईं कि मनुष्य तर्कसंगत कर्ता (रैशनल एक्टर्स)  के रूप में कार्य करता है। मानसिक लेखांकन की थैलर की धारणा दर्शाती है कि कैसे लोग कुछ डॉलरों को दूसरों की तुलना में ज़्यादा महत्व देते हैं। फिर भी, एक ही समय में, इन सभी डॉलर का मूल्य समान है। उदाहरण के लिए, लोग $40 की खरीदारी पर $20 बचाने के लिए किसी अन्य मॉल पर जाने का निर्णय लेते हैं, लेकिन वे $2000 की वस्तु पर समान $20 बचाने के लिए किसी अन्य स्टोर पर नहीं जाएँगे।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत के फायदे और नुकसान

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तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत के कई लाभों में से एक यह है कि यह व्यक्तिगत और सामूहिक व्यवहारों को समझाने में मदद कर सकता है। इससे जुड़ी सभी शिक्षाएँ उन चीजों को अर्थ देने की कोशिश करती हैं जो हम रोज़मर्रा की दुनिया में देखते हैं। तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत बताता है कि लोग, समूह और समाज विशेष लागतों और पुरस्कारों के आधार पर कुछ विकल्प क्यों बनाते हैं।

साथ ही, यह सिद्धांत तर्कहीन लगने वाले व्यवहार को समझाने में मदद कर सकता है। क्योंकि तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत का केंद्रीय विचार यह है कि सभी व्यवहार तर्कसंगत हैं, किसी भी कार्रवाई का सर्वेक्षण उसके अंतर्निहित तर्कसंगत प्रेरणाओं के लिए किया जा सकता है।

इस प्रकार, तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत के मुख्य लाभ हैं:

  • तर्कसंगत निर्णय लेने की प्रक्रिया व्यक्तिगत और सामूहिक व्यवहारों की व्याख्या करती है।
  • यह उन चीजों को अर्थ देने की कोशिश करता है जो हम दुनिया में देखते हैं।
  • तर्कसंगत दृष्टिकोण अर्थ उस व्यवहार की व्याख्या करता है जो तर्कहीन दिखता है या लगता है।

इस सिद्धांत के नुकसानों में शामिल हैं:

  • व्यक्ति हमेशा तर्कसंगत निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते।
  • वास्तव में, लोग अक्सर बाहरी कारकों से प्रभावित होते हैं जो तर्कसंगत नहीं हैं जैसे कि भावनाएँ ।
  • लोगों के पास उस पूर्ण जानकारी तक हमेशा पहुँच नहीं हो सकती जिसकी उन्हें हर बार एक बढ़िया तर्कसंगत निर्णय लेने के लिए आवश्यकता होती है।
  • लोग कुछ राशियों को दूसरों की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत के उदाहरण

तर्कसंगत निर्णय लेने के मॉडल के अनुसार, लोग अपनी लागत को कम करके अपने लाभों को अधिकतम करने का प्रयास करते हुए निर्णय लेते हैं। इसलिए, तर्कसंगत निवेशक बहुत कम कीमत वाले शेयरों को जल्दी से खरीद लेंगे और बहुत अधिक कीमत वाले शेयरों को कम में बेच देंगे।

एक तर्कसंगत उपभोक्ता का एक उदाहरण दो कारों के बीच चयन करने वाला व्यक्ति भी होगा। कार ‘क’ कार ‘ख’ से सस्ती है, और यही कारण है कि उपभोक्ता ‘क’ विकल्प खरीदता है।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत क्या है?

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत का मुख्य बिंदु यह है कि लोग शेल्फ से उत्पादों का बेतरतीब ढंग से चयन नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे विश्लेषण के आधार पर निर्णय लेते हैं। तो सबसे पहले, वे एक तार्किक निर्णय लेने की प्रक्रिया का उपयोग करते हैं जिसमें वे विभिन्न विकल्पों की लागत और लाभों पर विचार करते हैं। फिर, वे उस विकल्प को चुनते हैं जो सबसे अधिक लाभ या कम से कम लागत प्रदान करता है।

दूसरे शब्दों में, तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत कहता है कि लोग तर्कसंगत प्राणी हैं जो अपने स्वार्थ के आधार पर तार्किक निर्णय लेते हैं। सिद्धांत की जड़ें सूक्ष्मअर्थशास्त्र में हैं, लेकिन इसे अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया गया है, जैसे कि अपराध विज्ञान और राजनीति विज्ञान। इसका उपयोग मतदान व्यवहार से लेकर लोग अपराध क्यों करते हैं, सब कुछ समझाने के लिए किया गया है।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत की स्थापना किसने की?

स्कॉटिश अर्थशास्त्री एडम स्मिथ (Adam Smith) को तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत के जनक होने का श्रेय दिया जाता है। स्मिथ ने अपनी 1776 की पुस्तक “एन इन्क्वायरी इन द नेचर एंड कॉज ऑफ द वेल्थ ऑफ नेशंस” में अदृश्य हाथ के अपने विचार को सामने रखा।

अदृश्य हाथ यह अवधारणा है कि अपने स्वार्थों का पालन करने वाले लोग अंततः समाज को लाभान्वित करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे लगातार ऐसे निर्णय ले रहे हैं जो संसाधनों और उत्पादन को अनुकूलित करने में मदद करते हैं।

उदाहरण के लिए, एक व्यवसाय स्वामी अधिक कमाने के लिए एक नया स्टोर खोलने का निर्णय ले सकता है। हालाँकि, ऐसा करने से नौकरियाँ भी पैदा होंगी और अर्थव्यवस्था में योगदान भी होगा।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत के मुख्य लक्ष्य क्या हैं?

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तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत का मुख्य लक्ष्य मानव व्यवहार को बेहतर ढंग से समझना है। यह समझना कि लोग कैसे निर्णय लेते हैं, यह भविष्यवाणी करना आसान बना सकता है कि वे कुछ परिस्थितियों में क्या करेंगे।

यह बताता है कि क्यों व्यक्ति और बड़े समूह विशिष्ट लागतों और पुरस्कारों के आधार पर कुछ विकल्प चुनते हैं। सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति अपने स्वयं के हितों का उपयोग उन विकल्पों को करने के लिए करते हैं जो उन्हें अंतिम लाभ प्रदान करेंगे। फिर, वे विकल्पों की तुलना करते हैं और उनको तोल-मोल कर वह विकल्प चुनते हैं जो उन्हें लगता है कि उनकी सबसे अच्छी सेवा करेगा।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत क्या है?

सरकारें, राज्य, गैर-सरकारी संगठन और बहुराष्ट्रीय निगम सभी मनुष्यों द्वारा चलाए जाते हैं। इन संगठनों के कार्यों को समझने के लिए, हमें उन्हें चलाने वाले मनुष्यों के कार्यों और विचारों को समझना होगा।

इस बात को बेहतर ढंग से समझने के लिए कि राज्य अपने निर्णय क्यों लेते हैं, तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत को लागु किया जा सकता है।  इसके अलावा, यह सिद्धांत यह समझाने में मदद करता है कि इन संगठनों के नेता और अन्य महत्वपूर्ण लोग कैसे निर्णय लेते हैं। तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत इन कर्ताओं के भविष्य के कार्यों की भविष्यवाणी भी कर सकता है।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत की खूबियाँ क्या हैं?

इस सिद्धांत की कई खूबियों में से एक इसका बहुमुखी उपयोग है। मानव व्यवहार को बेहतर ढंग से समझाने के लिए इसे कई अलग-अलग विषयों पर लागू किया जा सकता है।

इसकी एक और खूबी यह है कि, यह मानता है कि लोग तर्कसंगत प्राणी हैं जो अपने स्व-हित के आधार पर निर्णय लेते हैं। यह इस बात को समझने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है कि लोग जो करते हैं वह क्यों करते हैं।

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत भी व्यक्तियों को ठोस आर्थिक निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। और उन निर्णयों को लेकर, वे ऐसे टूल्स प्राप्त कर सकते हैं जो उन्हें भविष्य में अपनी प्राथमिकताओं को अधिकतम करने की अनुमति देंगे।

निष्कर्ष

तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत एक शक्तिशाली टूल है जिसका उपयोग मानव व्यवहार को समझाने के लिए किया जा सकता है। इसमें कई खूबियाँ हैं, जिनमें यह विचार करने की क्षमता भी शामिल है कि लोग तर्कसंगत प्राणी हैं जो  स्व-हित के आधार पर निर्णय लेते हैं।

इसके अतिरिक्त, यह सिद्धांत लोगों को ठोस आर्थिक निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। लोग इसे समझ कर और लागू करके अपने जीवन और अपने आसपास की दुनिया को बेहतर बना सकते हैं।

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